‘हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की’
भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर जन्म पूरी मानव जाति के लिए वरदान है। कहा जाता है कि द्वापर युग में कंस के अत्याचार बढ़ रहे थे, जिनका अंत करने और धर्म की स्थापना के लिए भगवाव विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने पृथ्वी लोक पर जन्म लिया। श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। हर साल इसी तिथि पर कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल 18 और 19 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार है। जन्माष्टमी में रात 12 बजे बाल गोपाल की जन्म होता है। उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। नंद गोपाल का प्रिय भोग अर्पित कर प्रसाद वितरित किया जाता है। श्रद्धालु जन्माष्टमी में उपवास करते हैं और पूजा अर्चना के बाद भगवान से मनोकामना मांगते हैं। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा करने से भगवान की कृपा बरसती है और निसंतानों को कान्हा जैसे सुंदर, प्यारे और ज्ञानी संतान की प्राप्ति होती है। जन्माष्टमी के दिन पर लोग एक दूसरों को कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं भेजते हैं।
दही हांडी
कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। विशेषकर इसका महत्व गुजरात और महाराष्ट्र में है। दही हांडी का इतिहास बहुत दिलचस्प है। बालपन में कान्हा बहुत नटखट थे। वह पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। कन्हैया को माखन, दही और दही बहुत प्रिय था। उन्हें माखन इतना प्रिय था कि वह अपने सखाओं के साथ मिलकर गांव के लोगों के घर का माखन चोरी करके खा जाते थे। कान्हा से माखन बचाने के लिए महिलाएं माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटका दिया करती, लेकिन बाल गोपाल अपने सखाओं के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर उसके जरिए ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चोरी कर लेते। कृष्ण के इन्ही शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग दिया जाता है। लड़के नाचते गाते पिरामिड बनाते हुए मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते हैं। इसे दही हांडी कहते हैं, जो लड़का ऊपर तक जाता है, उसे गोविंदा कहा जाता है।
भगवान कृष्ण के सिर पर मोरपंख जिम्मेदारियों का है प्रतीक
एक राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए ज़िम्मेदार होता है। वह ताज के रूप में इन जिम्मेदारियों का बोझ अपने सिर पर धारण करता है। लेकिन श्री कृष्ण अपनी सभी जिम्मेदारी बड़ी सहजता से पूरी करते हैं – एक खेल की तरह। जैसे किसी माँ को अपने बच्चों की देखभाल कभी बोझ नहीं लगती। श्री कृष्ण को भी अपनी जिम्मेदारियां बोझ नहीं लगतीं हैं और वे विविध रंगों भरी इन जिम्मेदारियों को बड़ी सहजता से एक मोरपंख (जो कि अत्यंत हल्का भी होता है) के रूप में अपने मुकुट पर धारण किये हुए हैं।
श्री कृष्ण हम सबके भीतर एक आकर्षक और आनंदमय धारा हैं। जब मन में कोई बेचैनी, चिंता या इच्छा न हो तब ही हम गहरा विश्राम पा सकते हैं और गहरे विश्राम में ही श्री कृष्ण का जन्म होता है।
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